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Hiroshima Day 2023: टाला जा सकता था जापान पर परमाणु बम का गिराना

हाइलाइट्स

द्वितीय विश्व युद्ध में जापान पर परमाणु बम गिराने की घटना टाली जा सकती थी.
दस्तावेज बताते हैं चाहे परमाणु बम गिरते या ना गिरते जापान समर्पण करने ही वाला था.
प्रमाण इस बात के भी हैं जापान के समर्पण की मंशा अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रूमैन भी जानते थे.

6 अगस्त को हम एक बार फिर से 1945 में जापान के हिरोशिमा में गिराए गए परमाणु बम के हादसे की सालगिरह मना रहे हैं. दुनिया भर में मीडिया के हर प्रारूप में इस पर विश्लेषण होता है कि वह बम कितना खतरनाक था और दुनिया किस खतरनाक मोड़ पर खड़ी है और तब से अब तक परमाणु और अन्य हथियार कितने खतरनाक हो गए हैं. युद्ध की विभिषिका कितनी खतरनाक होती है और दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध से बचाना कितना जरूरी है. एक बहस का विषय यह भी रहा है कि क्या उस समय जापान पर परमाणु बम गिराना वाकई बहुत जरूरी था. लेकिन एक सच यह भी है कि इसे टाला जा सकता था.

लगातार प्रयास करते रहने की जरूरत
हिरोशिमा दिवस मनाने का उद्देश्य दुनिया में शांति को प्रोत्साहित कर उसे कायम रखने के लिए सतत प्रयास करना है. इसके साथ ही इस दिन दुनिया को  परमाणु हथियारों से होने वाले नुकसान के प्रति जागरुकता फैलाने का काम किया जाता है जिससे संसार परमाणु हथियारों से मुक्त होने केलिए ठोस कदम उठाता रहे. 1945 में हुआ यह परमाणु हमला दुनिया के किसी भी शहर पर हुआ पहला परमाणु हमला था. इसमें कुप्रभाव के संकेत आज भी हिरोशिमा में देखने को मिलते हैं.

जापान पर कब्जा किए बिना समर्परण
यूरोप में द्वितीय विश्व युद्ध हिटलर की मौत के दिन यानि 30 अप्रैल के बाद 7 मई को जर्मनी के समर्पण के साथ ही खत्म हो गया था. उसके बाद युद्ध एशिया में सीमित हो गया था जहां जापान के पीछे हटने की भी शुरुआत हो चुकी थी. दलील दी जाती है कि जापान पर बिना कब्जा किए हमले की रणनीति के तहत ही परमाणु बम के उपयोग पर विचार हुआ था जिसमें वजह यह बताई गई थी कि बम के इस्तेमाल से हजारों अमेरिकी सैनिकों की जान बचाई जा सकेगी जो जापान पर कब्जा करते समय जा सकती थीं.

सबसे किफायती तरीका?
इस दौरान जापान के भी हजारों सैनिक मारे जाते. लेकिन परमाणु बम यह सब कुछ एक झटके में खत्म कर सकता है. बताया जाता है कि युद्ध खत्म करने का इससे ज्यादा किफायती तरीका और नहीं था. लेकिन क्या यह सब बिना परमाणु बम गिराए भी हो सकता था? लॉसएंजलिस टाइम्स के लेख के मुताबिक अमेरिकी और जापानी ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हैं कि जापान तो अगस्त में आत्मसमर्पण करने ही वाला था, भले ही उस पर परमाणु गिराया जाता या ना गिराया जाता.

हिरोशिमा का गेनबाकू डोम शहर का इकलौता ढांचा था जो आणविक बम के हमले में कुछ बच गया था. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)

ट्रूमैन जानते थे यह बात
दस्तावेज तो यह भी दावा करते हैं यह बात तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमैन और उनके नजदीकी सलाहकार तक जानते थे. मित्र राष्ट्रों की बिना शर्त समर्पण की मांग ने जापानियों में डर बैठा दिया था कि जापानी सम्राट,  जिसे बहुत से लोग देवता मानते हैं, पर युद्ध के अपराधियों की तरह मुकदमा चला कर उन्हें मार दिया जाएगा. उस समय कई जापानी राजनियक मानते थे कि बिनाशर्त समर्पण ही शांति में बाधा है. इधर अमेरिका के पास खुफिया खबरें ऐसी भी आ रही थीं कि सोवितय संघ बर्लिन की तरह जापान में भी घुस सकता है.

सोवियत संघ का फैक्टर?
ट्रूमैन जानते थे कि जापानी भी युद्ध खत्म करने के तरीके खोज रहे हैं. वे यह भी जानते थे कि सोवियत संघ का जापान के खिलाफ उतरना उसे पूरी तरह से हरा देगा. यहां तक कि सोवियत संघ 15 अगस्त की तरीख भी तय कर चुका था. जापान सोवियत संघ के आने के बाद से जल्दी से समर्पण और शांति प्रक्रिया शुरू करने पर काम करने में लग गया था. क्योंकि जापानी सेना पर हिरोशिमा के बम का कोई असर नहीं हुआ था.

अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमैन जानते थे कि जापान समर्पण करने वाला है फिर उन्होंने परमाणु बम गिराने का फैसला नहीं रोका. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)

परमाणु बम से बड़ा खौफ?
लेकिन 8 अगस्त के बाद सोवियत संघ का जापान की ओर बढ़ना, जापान के दुःस्वप्न को बढ़ा गया और वॉशिंगटन डीसी के नेशनल म्यूजियम ऑफ यूएस नेवी के दस्तावेज बताते हैं कि तब हिरोशिमा- नागासाकी में एक लाख 35 हजार लोगों की मौत का जापानी सेना पर नहीं के बराबर ही असर हुआ था. लेकिन जापान पर कम्युनिस्टों का कब्जा उनके लिए भयावह था.

बहुत से अमेरिकी अधिकारियों का कहना था कि परमाणु बम सैन्य तौर पर या तो गैर जरूरी है या नैतिक तौर पर निंदनीय है या फिर दोनों ही है. खुद ट्रूमैन के चीफ ऑफ स्टाफ ने एक लिखित दस्तावेज में स्वीकर किया कि “.. युद्ध में जापान के खिलाफ परमाणु बम का कोई फायदा नहीं हुआ था. जापान पहले ही हार चुका था और समर्पण के लिए तैयार था.” लेकिन ट्रूमैन नहीं माने और इतिहास कुछ और हो गया.

टाइम्स ऑफ़ हिंदी की दृष्टि से

हमारे इतिहास में हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु बम के द्वारा हुए हमले की यादगार सालगिरह पर हम विचार करते हैं कि क्या इससे हमें कोई सबक मिला है। इससे पहले के युद्धों के मुकाबले, यदि राष्ट्रों के बीच वार को रोकने की क्षमता होती, तो क्या हम आज एक बेहतर और शांत दुनिया में रहते? यह विचार महत्वपूर्ण है और हमें आपसी सौहार्द और समझदारी के माध्यम से आगे बढ़ने की आवश्यकता है।

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